आजकल ‘विकसित भारत’ शब्द विमर्श के केन्द्र में है। यह शब्द मीडिया, राजनीतिक विमर्शों एवं अकादमिक संवादों में सर्वाधिक प्रचलित शब्द है।इन विमर्शों में ‘विकसित भारत’ के अर्थ, लक्ष्य एवं व्याप्तियों की चर्चा होती रहती है। इन विमर्शों में प्रश्न उठते हैं कि ‘विकसित भारत‘ क्या है? क्या यह मात्र एक शब्द है? क्या यह राजनीतिक प्रतीक है? क्या यह नारा है? क्या यह एक भविष्य परक लक्ष्य है? क्या यह राष्ट्र निर्माण का एक परिवर्तनकारी मिशन है? एक धारणा यह भी है कि विकसित भारत इन सभी अर्थों का एक संतुलित सम्मिश्रण है।
यह विदित है कि ‘विकसित भारत‘ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन एवं मिशन दोनों है। अगर गहराई से व्याख्यायित करें तो भारतीय आधुनिक इतिहास में तीन परिवर्तनकारी दीर्घ क्षण दिखते हैं- पहला, महात्मा गांधी का भारत की आजादी का मिशन, आजादी के बाद राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के लक्ष्यों को लागू करने का मिशन और तीसरा क्षण है ‘विकसित भारत का मिशन‘ जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्पित किया है।
‘विकसित भारत का मिशन‘ जिसे फ्रेंच एनाल्स की शब्दावली में कहें तो एक ‘लॉगे डुरे‘ (दीर्घ कालीन प्रक्रिया है) जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) की सरकार ने विनियोजित किया है।
सबसे पहले ‘विकसित भारत‘ को हम एक प्रतीक के रूप में विश्लेषित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह प्रतीक एक ‘विकासपरक‘ प्रतीक है, जिसमें दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में आना एक लक्ष्य के रूप में शामिल है। विकसित देशों में विकास के जितने भी मानक हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, गुणात्मक जीवन, सुख, खुशी, समरसता इत्यादि के आधार पर शीर्ष पर पहुंचने की प्रतिबद्धता आदि इस विकसित भारत के प्रतीक में निहित है।
इस विकसित भारत में जनतंत्र के ऐसे व्यापक प्रसार का स्वप्न है जिसमें सभी सामाजिक समूहों के सम्मान की चाहत निहित है। विकसित भारत के इस प्रतीक में विकास की आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के साथ ही समाज की बेहतरी के लिए सुविधाएं, संचार एवं बाजार का जनोपयोगी विकास भी प्राप्त करना ही होगा। इस प्रकार एक प्रतीक के रूप में विकसित भारत विकास के अनेक रूपों यथा आर्थिक विकास, सांस्कृतिक विकास, सुख एवं संतोष की प्राप्ति, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक उन्नयन, ज्ञान जगत में शीर्ष कोटि प्राप्त करने के लक्ष्य को अपने में शामिल किए हुए है।
अगर आप विकसित भारत की इस चल रही यात्रा को देखेंगे तो जाहिर होगा- एक तरफ शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार सरकार कार्यरत है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 जो विकसित भारत के लक्ष्य से जुड़ी है, जिसमें स्थानीय ज्ञान, एवं वैश्विक ज्ञान का सर्वोच्च समन्वय है, को फलीभूत करने में भारत का शिक्षा मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में धर्मेंद्र प्रधान, शिक्षा मंत्री के रूप में सक्रिय है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनस्वास्थ्य को मजबूत बनाकर गांव-शहर हर जगह के गरीबों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाकर ‘स्वस्थ भारत‘ के लक्ष्य को प्राप्त करने का काम जारी है।
आधारभूत संरचना के लिए हाइवे, सीक्सलेन, फोरलेन, सर्विस रोड, लिंक रोड का निर्माण कर गांव-गांव, बस्ती-बस्ती, शहर-शहर, मेट्रोपोल्स को जोड़ कर नया भारत रचने का काम भी चल ही रहा है।
इसके साथ ही धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्थलों को विकसित कर भारतीयजनों को सुविधाजनक तीर्थ यात्रा के अभियान से जोड़ने का काम तेज गति पर है। विकसित भारत मिशन के सक्रिय रणनीतियों से साफ जाहिर होता है कि आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सैन्य शक्ति से युक्त भारत ही ‘विकसित भारत‘ का आधार बनेगा।
‘विकसित भारत‘ की यह संकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पंच प्राण‘ पर आधारित है। इस पंच प्राण में विकसित भारत का लक्ष्य, गुलामी के हरेक स्मृति एवं प्रतीक से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता की शक्ति, नागरिकों में कर्तव्य बोध जागरण द्वारा इस अमृत काल में एक ऐसे ‘भारतीय आत्म‘ को रचने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्राण एवं संकल्प दिया है, जो विकसित भारत का आधार बन सकेगा।
अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सांस्कृतिक आजादी की बात की तो अनेक रूपों में उनकी आलोचना की गई। इस प्रक्रिया में हम भूल गए कि दुनिया की हर राजनीतिक आजादी धीरे-धीरे अपने लिए विभिन्न चरणों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक आजादी प्राप्त कर एक प्रभावी एवं विकसित राष्ट्र का निर्माण करती है। दुनिया भर के मूल्कों के मुक्ति का इतिहास अगर देखें तो जाहिर होगा कि आजादी प्राप्ति के बाद भी ऐसे अनेक औपनिवेशिक राष्ट्रों को अपने मानस, संस्कृति एवं समाज को इस स्थिति से निकलने के लिए अनेक चरणों में काम करना पड़ा है। इस सन्दर्भ में केन्या के प्रसिद्ध लेखक आंगुगी बाच्योंगो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘डिकोली नाइजिंग माइंड‘ को देखा जा सकता है। इस प्रकार विकसित भारत का अभियान एवं गुलामी की संस्कृति से सांस्कृतिक मुक्ति का अभियान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
विकसित भारत का यह प्रतीक एक प्रकार से ‘भविष्य परक आशा‘ का प्रतीक है जिसमें ‘भारत भविष्य‘ की दीर्घकालिक परियोजना एवं दृष्टि दिखाई पड़ती है। वस्तुतः भारतीय इतिहास का यह तीसरा चरण जो विकसित भारत का चरण है, इस रूप में महत्वपूर्ण है कि इसमें पहली बार महात्मा गांधी के बाद किसी भारतीय राजनयिक ने भारत के भविष्य की दीर्घकालिक संकल्पना प्रस्तुत की है। इसके पहले के हमारे राजनयिकों ने ‘भारत भविष्य‘ को पंचवर्षीय योजनाओं में बॉट रखा था। यह एक प्रकार से खण्डित भविष्य की संकल्पना थी, को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के एक दीर्घकालीन सुसंगत भविष्य की रूपरेखा एवं कार्य योजना के रूप में प्रस्तुत किया है। इस विकसित भारत के दो मुख्य आधार हैः-
पहला- ‘एस्पीरेशनल भारत‘ एवं दूसरा-‘आशाओं से उद्भूत भारत‘! विकसित भारत की आकांक्षा ही वह बीज भावनात्मक शक्ति होती है, जो किसी भी राष्ट्र को विकसित बनाती है। भारत में भी पिछले दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनेक उद्बोधनों एवं कार्यों ने भारतीय जनमानस में विकसित होने की अकूत चाहत विकसित की है। यह चाहत आधार तल से शीर्ष तक, नीचे से ऊपर तक स्तरों में बॅटे जन समूहों में दिखाई पड़ता है। सरकार के अनेक जन कल्याण एवं गरीब कल्याण योजनाओं ने गरीब एवं अति पीछड़े जनों में भी आकांक्षा की क्षमता पैदा की है।
इस आकांक्षा की बीज तत्व आशा है। जब कोई राजनीतिक नेतृत्व लोगों में आशा का भाव पैदा कर देती है, तो उनमें आकांक्षा भाव भी पैदा कर देता है। यही आकांक्षा भाव लोगों में विकास परक लक्ष्य के लिए समर्पित होने की कामना पैदा कर देती है। इस प्रकार विकसित भारत के दो मूल तत्व है, वह हैं- आशा एवं आकांक्षा। आशा एवं आकांक्षा मिलकर लोगों में ‘भविष्य‘ का बोध जागृत करते हैं। यही भविष्य का बोध आज के ‘विकसित भारत‘ का मूलाधार है, जो आर्थिक, सांस्कृतिक, ज्ञान एवं अध्यात्म के क्षेत्र में भारत की प्रगति में परिलक्षित हो रहा है।
(Badri Narayan is the Director of G.B. Pant Social Science Institute (GBPSSI), Allahabad, specializing in socio-cultural history and political-cultural anthropology.)