जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों से संपत्ति का ब्योरा प्राप्त करें, सत्यापित करें और इसे निर्धारित समय सीमा में प्रस्तुत करें। यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि कोई भी न्यायिक अधिकारी व्यक्तिगत रूप से संपत्ति की घोषणा सीधे जमा न करे।By Shashank Shekhar Bajpai Publish Date: Tue, 07 Jan 2025 02:29:30 PM (IST)Updated Date: Tue, 07 Jan 2025 02:29:30 PM (IST)संपत्ति का ब्योरा 28 फरवरी 2025 तक हाई कोर्ट के ईमेल पर अपलोड करने के दिए गए हैं निर्देश।HighLightsहाई कोर्ट की सख्ती: रजिस्ट्रार जनरल विजिलेंस का पत्र जारी। इसमें लिखा है- लापरवाही पर प्रधान न्यायाधीश होंगे जिम्मेदार। निर्धारित प्रारूप में तय समय में ही देना होगा संपत्ति का ब्योरा।नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल विजिलेंस आलोक कुमार ने प्रदेश के सभी प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को पत्र लिखकर न्यायिक अधिकारियों की चल-अचल संपत्ति का विवरण पेश करने का निर्देश दिया है।पत्र में कहा गया है कि सभी जज 31 दिसंबर 2024 की स्थिति में अर्जित संपत्तियों का ब्योरा निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत करें। इसे 28 फरवरी 2025 तक हाई कोर्ट के ईमेल पर अपलोड करें। जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों से संपत्ति का ब्योरा प्राप्त करें, सत्यापित करें और इसे निर्धारित समय सीमा में प्रस्तुत करें।यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि कोई भी न्यायिक अधिकारी व्यक्तिगत रूप से संपत्ति की घोषणा सीधे जमा न करे। इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की लापरवाही के लिए संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीधे जिम्मेदार होंगे।संपत्ति की जानकारी में क्या देना होगा विवरण अचल संपत्तियों के तहत जमीन, मकान या अन्य अचल संपत्तियों का विवरण देना होगा। साथ ही यह भी बताना होगा कि इन संपत्तियों को अर्जित करने का स्रोत क्या है। चल संपत्तियों में जेवरात, बैंक में जमा राशि, शेयर, निवेश, एफडी, पीपीएफ, जीपीएफ, एनएसएस और अन्य धनराशि की जानकारी देनी होगी।526 अधिकारियों से मांगी गई जानकारी प्रदेश में कार्यरत 526 न्यायिक अधिकारियों को अपनी संपत्ति की जानकारी निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत करनी होगी। रजिस्ट्रार जनरल विजिलेंस ने प्रदेशभर के सभी जिलों के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि विवरण ईमेल के साथ-साथ पंजीकृत डाक के माध्यम से हार्ड कापी के रूप में भेजा जाए।निर्देश का पालन न करने पर जिम्मेदारी भी तय रजिस्ट्रार विजिलेंस ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार की चूक के लिए संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश जिम्मेदार होंगे। यह आदेश बालोद, बेमेतरा, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, जशपुर, कोरबा, रायगढ़, बस्तर, सरगुजा, सूरजपुर समेत प्रदेश के अन्य जिलों में लागू किया गया है।यह भी पढ़ें- नक्सलियों की हरकत से फिर दहला दिल, पढ़िए देश को झकझोर देने वाली छत्तीसगढ़ की अब तक की घटनाएंसुनवाई का अवसर दिए बगैर सेवा समाप्त करना अवैध छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य शासन द्वारा डीकेएस अस्पताल रायपुर के चिकित्सक की सेवा समाप्ति को अवैध करार दिया है। इसके साथ ही इस विवादित आदेश निरस्त कर दिया है। हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर तल्ख टिप्पणी की।कोर्ट ने कहा कि विभागीय जांच किए बिना और सुनवाई का अवसर दिए बिना कलंकपूर्ण आदेश पारित करना सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 का उल्लंघन है। अधिवक्ता संदीप दुबे ने तर्क दिया कि बिना विभागीय जांच और सुनवाई का अवसर दिए सेवा समाप्ति का आदेश प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।यह भी पढ़ें- एप्लीकेशन फ्री, इसलिए बड़ी संख्या में बिना तैयारी भर्ती परीक्षा दे रहे युवाबताते चलें कि गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रवेश शुक्ला पर शराब घोटाले के आरोपित अनवर ढेबर को एम्स रेफर करने को लेकर अनुशासनहीनता और सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए उनकी सेवा समाप्त कर दी गई थी।