न्यायालय ने \’राम सेतु\’ को राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित करने से जुड़ी याचिका पर केन्द्र से जवाब मांगा

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नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की उस याचिका पर जवाब दाखिल करने के वास्ते केन्द्र को चार सप्ताह का समय दिया है जिसमें राम सेतु को राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ को स्वामी ने बताया कि यह एक छोटा सा मामला था जहां केंद्र को या तो ‘‘हां’’ या ‘‘नहीं’’ कहना चाहिए था. केंद्र के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगते हुए कहा, ‘‘जवाबी हलफनामा तैयार है. हमें मंत्रालय से निर्देश लेने होंगे.’’ पीठ ने कहा, ‘‘आप अपने (केंद्र) पैर पीछे क्यों खींच रहे हैं.’’

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किये जाने पर इसकी एक प्रति याचिकाकर्ता (स्वामी) को दी जाये. इसके बाद यदि उस पर कोई जवाब देना हो तो उसके लिए दो सप्ताह का समय दिया जाता है.’’ इससे पूर्व तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने तीन अगस्त को कहा था कि स्वामी की याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जायेगा.

राम सेतु को एडम्स ब्रिज के तौर पर भी जाना जाता है. यह तमिलनाडु के दक्षिणपूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की एक शृंखला है. भाजपा नेता स्वामी ने कहा था कि वह मुकदमे का पहला चरण जीत चुके हैं जिसमें केंद्र सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व को माना है. उन्होंने कहा कि संबंधित केंद्रीय मंत्री ने वर्ष 2017 में उनकी मांग पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई थी, लेकिन इसके बाद कुछ भी नहीं हुआ.

स्वामी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की पहली सरकार की ओर से शुरू की गई विवादित सेतुसमुद्रम शिप चैनल परियोजना के खिलाफ अपनी जनहित याचिका में राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने का मुद्दा उठाया था. यह मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा, जहां 2007 में राम सेतु पर परियोजना के लिए काम पर रोक लगा दी गई.

बाद में केंद्र सरकार ने कहा था कि उसने परियोजना के \’\’सामाजिक-आर्थिक नुकसान\’\’ पर विचार किया था और राम सेतु को नुकसान पहुंचाए बिना परियोजना के लिए एक और मार्ग तलाश करने की कोशिश की थी. इसके बाद अदालत ने सरकार से नया हलफनामा दाखिल करने को कहा था.