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Friday, March 31, 2023

कुछ देशों की दूसरों से श्रेष्ठ समझने की विश्व व्यवस्था में यकीन नहीं रखता भारत : राजनाथ

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नयी दिल्ली. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ऐसी विश्व व्यवस्था में यकीन नहीं रखता है, जहां कुछ देशों को दूसरों से श्रेष्ठ माना जाता है. उन्होंने कहा कि अगर सुरक्षा वास्तव में सामूहिक उद्यम बन जाती है तो सभी के लिए फायदेमंद वैश्विक व्यवस्था बनाने की संभावना तलाशी जा सकती है.

राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में एक संबोधन में उन्होंने साइबर हमलों तथा सूचना युद्ध कौशल जैसे उभरते ‘‘गंभीर’’ सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समन्वित प्रयास करने का अनुरोध किया. सिंह ने बताया कि सूचना युद्ध कौशल में राजनीतिक स्थिरता को खतरा पहुंचाने की क्षमता है.

उन्होंने कहा, ‘‘इसका कोई हिसाब नहीं है कि सोशल मीडिया मंचों के जरिए समाज में फर्जी खबरें तथा घृणा फैलाने वाली कितनी सामग्री लाए जाने की आशंका है. सोशल मीडिया तथा अन्य आॅनलाइन मंचों के संगठित इस्तेमाल का जनता की राय या अवधारणा बदलने में प्रयोग किया जा रहा है.

सिंह ने कहा, ‘‘सूचना युद्ध छेड़ना रूस तथा यूक्रेन में चल रहे संघर्ष से स्पष्ट है. इस संघर्ष में सोशल मीडिया ने युद्ध के बारे में प्रतिस्पर्धी धारणाएं फैलाने तथा अपने हिसाब से युद्ध को दर्शाने में दोनों पक्षों के लिए युद्ध के मैदान के रूप में काम किया.’’ रक्षा मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार का प्रमुख ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा पर है और उन्होंने कहा कि देश की पूरी क्षमता का इस्तेमाल तभी किया जा सकता है जब उसके हितों की रक्षा की जा सके.

उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षा किसी भी सभ्यता के फलने-फूलने के लिए अपरिहार्य है.’’ उन्होंने साइबर युद्ध कौशल को लेकर आगाह किया और कहा कि इससे अहम बुनियादी ढांचे की भेद्यता बढ़ गयी है. सिंह ने कहा, ‘‘मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमारी सामरिक नीति का आचरण नैतिक होना चाहिए. भारत ऐसी व्यवस्था में यकीन नहीं रखता है जहां कुछ देशों को दूसरों से श्रेष्ठ माना जाता है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत के कृत्य मानवीय समानता और प्रतिष्ठा के मूल सार द्वारा निर्देशित हैं जो हमारे प्राचीन मूल्यों तथा उसके मजबूत नैतिक आधार का हिस्सा है और हमें राजनीतिक शक्ति देते हैं. हमारा स्वतंत्रता संग्राम भी उच्च नैतिक मूल्यों की आधारशिला पर आधारित था.’’ उनकी यह टिप्पणियां तब आयी है जब ंिहद-प्रशांत के साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को लेकर ंिचता बढ़ गयी है.

रक्षा मंत्री ने कहा कि अगर सुरक्षा वाकई सामूहिक उद्यम बन जाती है तो ‘‘हम ऐसी वैश्विक व्यवस्था बनाने के बारे में सोच सकते हैं जो हम सभी के लिए फायदेमंद हो.’’ उन्होंने मार्टिन लूथर ंिकग जूनियर के हवाले से कहा, ‘‘कहीं भी अन्याय हर जगह न्याय के लिए खतरा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हाल के यूक्रेन संकट ने दिखाया कि कैसे इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. रूस और यूक्रेन मिलकर दुनियाभर में गेहूं तथा जौ का करीब एक तिहाई निर्यात करते हैं लेकिन इस संघर्ष ने विभिन्न अफ्रीकी तथा एशियाई देशों में खाद्य संकट पैदा कर दिया है.

सिंह ने कहा कि बिजली उत्पादन और वितरण जैसे अहम ढांचे तेजी से अधिक जटिल बन रहे हैं तथा ऐसी चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपटने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र साइबर हमलों के मुख्य निशानों में से एक है लेकिन यह इकलौता नहीं है. उन्होंने कहा कि परिवहन, सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाएं, दूरसंचार तथा अहम विनिर्माण उद्योग भी कमजोर हैं. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ‘‘शून्य संचय का खेल’’ नहीं माना जाना चाहिए तथा सभी के लिए फायदेमंद स्थिति पैदा करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, ‘‘हमें संकीर्ण स्वार्थों के अनुसार नहीं चलना चाहिए, जो दीर्घकाल में फायदेमंद नहीं है.’’ रक्षा मंत्री ने कहा कि दूसरों को नुकसान पहुंचाकर मजबूत तथा समृद्ध भारत नहीं बनाया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘‘इसके बजाय भारत दूसरे राष्ट्रों को अपनी क्षमता का अहसास कराने में मदद करता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारी एक-दूसरे से जुड़ी वित्तीय प्रणालियां भी खतरे में हैं. आप सभी को पता होना चाहिए कि फरवरी 2016 में हैकरों ने बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक को निशाना बनाया था तथा एक अरब डॉलर चुराने की कोशिश की थी. हालांकि, ज्यादातर लेनदेन रोक दिए गए लेकिन 10.1 करोड़ डॉलर अब भी गायब हैं.’’

सिंह ने कहा, ‘‘यह वित्तीय दुनिया के लिए खतरे की घंटी है कि वित्तीय प्रणाली में साइबर जोखिमों को बहुत कम आंका गया है. अगर आज यह सवाल नहीं है कि प्रमुख साइबर हमला वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा नहीं है तो फिर कब यह सवाल बनेगा.’’ रक्षा मंत्री ने आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के बीच कम हो रहे अंतर पर भी जोर दिया तथा कहा कि बदलते वक्त के साथ खतरों के नए आयाम जुड़ रहे हैं जिनका वर्गीकरण मुश्किल है. उन्होंने कहा कि आम तौर पर आंतरिक सुरक्षा की श्रेणी में आने वाला आतंकवाद अब बाहरी सुरक्षा की श्रेणी में गिना जा रहा है क्योंकि ऐसे संगठनों को देश के बाहर से प्रशिक्षण, वित्त पोषण तथा हथियार सहयोग दिया जा रहा है.

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