नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘ऑर्गनाइजर’ पत्रिका को निर्देश दिया है कि वह अपनी वेबसाइट से अपमानजनक और प्रथमदृष्टया मानहानिकारक पाए गए लेख को हटा दे, जिसमें एक ईसाई अल्पसंख्यक स्कूल के प्रधानाचार्य द्वारा चर्च से जुड़ी कई नन और हिंदू महिलाओं के साथ यौन अंतरंगता और शोषण के आरोप लगाए गए हैं.
प्रतिष्ठा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, यह उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया वादी (स्कूल के प्रधानाचार्य) की दलील में दम है कि लेख बिना किसी तथ्यात्मक सत्यापन के ”लापरवाह तरीके से प्रकाशित किया गया.” अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को किसी अन्य व्यक्ति को बदनाम करने और उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करने के निरंकुश अधिकार के रूप में नहीं लिया जा सकता है.
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने एकतरफा अंतरिम आदेश में कहा, ”मेरा प्रथमदृष्टया मानना है कि लेख की सामग्री मानहानिकारक है. वादी के तर्क में प्रथमदृष्टया दम है कि लेख बिना किसी तथ्यात्मक सत्यापन के लापरवाही से प्रकाशित किया गया है और वादी की छवि और प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है, जो इस देश का एक सम्मानित नागरिक है और कई शैक्षणिक संस्थानों से जुड़ा हुआ है.”
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ”यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि प्रतिष्ठा बनाने में वर्षों लग जाते हैं. इसलिए, प्रतिष्ठा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है.” अदालत ने भारत प्रकाशन (दिल्ली) लिमिटेड और पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर वीकली- वॉयस ऑफ द नेशन’ को अपनी वेबसाइट से मानहानिकारक लेख हटाने का निर्देश दिया और मुख्य मुकदमे में उन्हें समन जारी कर 30 दिन के भीतर अपना लिखित बयान दर्ज कराने को कहा.
अदालत ने 16 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) सभी लोगों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि यह अनुच्छेद 19 के तहत शर्तों के अधीन है (2) जिसमें मानहानि भी शामिल है.
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि अदालतों द्वारा बार-बार यह कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश एक प्रतिष्ठित गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूल के प्रधानाचार्य की याचिका पर आया.
याचिका में कहा गया है कि वादी की छवि खराब करने के लिए, प्रतिवादियों ने नौ जून/10 जून को अपनी वेबसाइट पर ‘इंडियन कैथोलिक चर्च सेक्स स्कैंडल: पादरी द्वारा नन और हिंदू महिलाओं का शोषण करने का पर्दाफाश’ शीर्षक वाले लेख में चर्च से जुड़ी कई नन और हिंदू महिलाओं की यौन अंतरंगता और शोषण से संबंधित आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री पोस्ट/ प्रकाशित किए.
लेख में दावा किया गया कि वादी स्टाफ सदस्यों, रसोइयों और छात्रों के साथ यौन गतिविधियों में लिप्त है और उस पर वित्तीय गड़बड़ियों का भी आरोप लगाया गया है. हालांकि, वादी ने दलील दी कि वह कभी भी किसी भी स्टाफ सदस्य, रसोइये, छात्र या नन के साथ किसी भी तरह से कथित यौन गतिविधि या वित्तीय गड़बड़ी में शामिल नहीं रहा और लेख केवल उसकी तथा मिशनरी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रकाशित किया गया.