अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में अपने देश की भूमिका और वित्तीय योगदान की समीक्षा करने का आदेश दिया है। उन्होंने यह भी दोहराया कि अमेरिका अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में भाग नहीं लेगा और न ही फिलिस्तीनियों की सहायता करने वाली संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) को धन देगा।
ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र पर अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया
मंगलवार को हस्ताक्षर किए गए अपने कार्यकारी आदेश में, ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र पर अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करने, उसके सहयोगियों पर हमला करने और यहूदी विरोधी विचार फैलाने का आरोप लगाया। अमेरिका सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और यूएन के कुल बजट का 22 प्रतिशत देता है। ट्रंप इसे अनुचित बोझ मानते हैं। यदि अमेरिका अपने योगदान में कोई बड़ा बदलाव करता है, तो इसका यूएन पर गहरा असर पड़ सकता है।
अमेरिका पहले ही मानवाधिकार परिषद से बाहर हो चुका है
ट्रंप से पहले राष्ट्रपति रहे जो बाइडेन के कार्यकाल में भी अमेरिका पहले ही मानवाधिकार परिषद से बाहर हो चुका था और यूएनआरडब्ल्यूए को फंडिंग बंद कर दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टेफेन डुजारिक ने ट्रंप के आदेश से पहले कहा, “अमेरिका जो भी फैसला करेगा, वह उसका अधिकार है, लेकिन मानवाधिकार परिषद की अहमियत पर हमारी राय नहीं बदलेगी।”
आदेशों पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा कि यूएनआरडब्ल्यूए का पैसा हमास तक पहुंचा, जो मानवता के खिलाफ काम करता है। बाइडेन प्रशासन ने भी यूएनआरडब्ल्यूए की फंडिंग इसलिए रोकी थी क्योंकि उस पर आरोप था कि उसके कुछ कर्मचारी हमास से जुड़े थे और उसकी सुविधाओं का आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल हुआ।
ट्रंप ने यूनेस्को से समीक्षा प्रक्रिया तेज करने को कहा
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने यूनेस्को से भी खुद को अलग कर लिया था, जिसे बाइडेन प्रशासन ने फिर से जॉइन किया। व्हाइट हाउस के अनुसार, ट्रंप ने यूनेस्को की समीक्षा के लिए तेज़ प्रक्रिया अपनाने को कहा, क्योंकि इसका “इजरायल विरोधी रुख” रहा है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने सबसे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका को बाहर कर दिया था, क्योंकि उन्होंने उस पर कोविड संकट को गलत तरीके से संभालने और चीन का समर्थन करने का आरोप लगाया था। (इनपुट-आईएएनएस)